कवि होते हैं। उनकी कृतियाँ होतीं हैं। कई कवियों की कृतियाँ कालजयी होती हैं। पर क्या ऐसा होता है कि किसी कवि की सभी कृतियाँ कालजयी होतीं होंं? नहीं। कई गणमान्य, सर्वसम्मानित कवियों ने भी बहुत सारी साधारण कृतियाँ रची हैं। कालजयी कृति की छाया में उनकी साधारण कृतियाँ भी अनमोल लगने लगतीं हैं।
कई बार नाम का वज़न होता है। इस नाम का वज़न इतना होता है कि हम मोहान्ध हो जाते हैं। अगर मोह नहीं हुआ तो इन चमकते सितारों की चकाचौंध में हम अंधे हो जाते हैं। जब कोई चित्रकार बड़ा बन जाता है तो उसकी खींची एक रेखा भी लाखों में बिकती है। पंडित और टीकाकार उस रेखा के अलग अलग मतलब भी निकाल लेते हैं। एक नाम जो मुझे बार बार सोशल मीडिया पर परेशान करता है, वो है सच्चिदानंद वात्स्यायन अज्ञेय का। उनका सादर अभिनंदन। तथापि आज कल उनकी एक कविता वायरल हो रही है जिसका मेरे अनुसार कुछ खास मतलब नहीं है।
जो पुल बनाएंगे वे अनिवार्यत: पीछे रह जाएंगे। सेनाएँ हो जाएंगी पार मारे जाएंगे रावण जयी होंगे राम, जो निर्माता रहे इतिहास में बन्दर कहलाएंगे।
वैसे बंदर एक अपमानजनक शब्द कब बना, ये भी विचारणीय प्रश्न है। इस कविता की नीयत भले ही अच्छी हो पर यहाँ जिस रूपक का प्रयोग हुआ है, वह प्रमादजन्य बौद्धिकता का परिचायक है। अज्ञेय जी सामने होते तो एक और प्रश्न पूछता –
जो पुल बनाएंगे
वे स्वतः
उस पार जायेंगे।
यदि उस पार नहीं जाएंगे
तो पुल कैसे बनाएंगे?
पता नहीं अज्ञेय जी इसका उत्तर देते या मज़ाक में टाल जाते पर चूंकि उन्होंने रामायण को उद्धृत किया है, तो उस पर थोड़ा और कहना पड़ेगा –
जो पुल बनाएंगे वे स्वतः उस पार जाएंगे। राम की सेना के नल और नील कहायेंगे जो निर्माता रहे योद्धा रहे इतिहास में सब वानर हनुमान हो जाएंगेे। जो रह न सके राम संग में लंका तो जला ही आयेंगे।
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