वैलेंटाइन’स डे, अम्मा, और हमारा प्यार।

फिल्म डॉन में अमिताभ बच्चन ने दो भूमिकाएँ निभायी हैं। उनमें से पहला किरदार नकारात्मक है। डॉन एक बहुत खतरनाक अपराधी है और उसके ही शब्दों में ११ मुल्कों की पुलिस उसका पीछा कर रहीं होतीं हैं। फिल्म शोले में जय और वीरू टुच्चे चोर हैं। फिल्म डर में शाहरुख़ खान ने एक बेहद संगीन और जुनूनी आशिक़ का किरदार निभाया है। फिल्म स्पेशल छब्बीस में अक्षय कुमार ने एक ठग का किरदार निभाया।

ये सब मैं आपको क्यूँ बता रहा हूँ? इस से पहले कि मैं उसका जवाब दूँ, मैं एक बात और बता देता हूँ। अभिनेता प्राण शायद अब तक के सबसे हरफनमौला कलाकार रहे हैं। कहा जाता है कि उनके नकारात्मक किरदारों को इतनी नफरत मिली कि एक वक़्त पर दर्शकों को यकीन हो गया कि प्राण निजी ज़िन्दगी में भी वही हाथ में चाबुक लेकर घूमने वाले पूंजीवादी हैवान हैं जो गरीब किसानों का खून पीता है। लोगों ने अपने बच्चों का नाम प्राण रखना बंद कर दिया।

वहीं, इनके पहले मैंने जिन लोगों की बात की है, उनको बेशुमार प्यार मिला। फिल्मों में नकारात्मक किरदारों के मर जाने पर लोग खुश नहीं हुए। अक्षय कुमार का किरदार जब सीबीआई को चकमा देकर भाग जाता है तो हमारी ख़ुशी मुस्कराहट बनकर चेहरे पर आ ही जाती है। परेशान मनोज बाजपेयी के किरदार से किसी को कोई सहानुभूति नहीं होती। ऐसे सभी नकारात्मक किरदारों को जिनको ऐसे अभिनेता निभाते हैं जो आमतौर पर नायक के रूप में पसंद किये जाते हैं, उनको बेशुमार प्यार मिलता है और उस किरदार से एक अनोखी सहानुभूति होती है। वहीं, रंजीत साहब का चेहरा सामने आते ही लड़कियों को देखकर लार टपकाने वाले बलात्कारी की छवि हमारे सामने उभर कर आती है।

कहने का मतलब ये है कि प्यार अंधा होता है। वो बुद्धि के सामने एक काला पर्दा लगा देता है जिसके आर पार कुछ नहीं दीखता। एक फिल्म हमारे पड़ोसी राज्य तमिल नाडु में भी चल रही है। श्रीमती शशिकला ने राज्य की महारानी बनने की पूरी तैयारी कर ली थी। सर्वोच्च न्यायालय को ये बात हजम नहीं हुई और जैसे वो हर जगह रायता फैला देते हैं, यहाँ भी फैला दिया। अब शशिकला कारावास में हैं और उनके सारे सपने सपने ही रह जायेंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने एक और इंसान को दोषी ठहराया है जो अब इस दुनिया में नहीं रहीं और लोगों को उनसे बहुत प्यार है। यहाँ पर आप संजय लीला भंसाली के बाजे और ढोल को पार्श्व संगीत समझ सकते हैं। मैं नायक-खलनायक-नायक-खलनायक जयललिता उर्फ़ अम्मा को चित्रपट (screen) पर ला रहा हूँ।

मज़े की बात ये है कि जो भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा वो हम सब जानते थे। जनता से कुछ छुपता नहीं। फिर भी हम अम्मा से बहुत प्यार करते हैं। एक प्यार जस्टिस काटजू का भी है।  मैं उसकी बात नहीं कर रहा।  मैं अम्मा से अम्मा वाले प्यार की बात कर रहा हूँ। अम्मा के पाप और शशिकला के पाप बराबर के हैं फिर भी हम दीवाने पागल, अम्मा के पीछे पागल और शशिकला को हर तरह की गालियों से नवाज़ रहे हैं। अभी तो ऐसा ही लग रहा है कि अम्मा दरअसल अम्मा नहीं थीं बल्कि एक छोटी सी मासूम बच्ची थीं जिनको पगली बुढ़िया शशिकला ने बहका दिया। अम्मा के सौ खून माफ़।

ये प्यार है। अँधा और बड़बोला। और इस प्यार के क्या क्या उपयोग हैं, ये आप पन्नीरसेल्वम से पूछिये जिनकी इष्ट देवी आजीवन (और ख़ास तौर इन दिनों) अम्मा रहीं  हैं। अम्मा अपरम्पार हैं। पन्नीरसेल्वम की दशा इस वक़्त ऐसी है कि कोई आज अगर उनसे अम्मा के कुकृत्यों के बारे में पूछे तो वो शायद यही कहेंगे कि चोरी तो भगवान कृष्ण ने भी की थी। अम्मा ने भी रुपये रुपी माखन चुराए, ये उनकी अधेड़ लीला थी।

ये प्यार है। अँधा और बड़बोला। वही प्यार जिसकी बदौलत चंद बेईमान लोगों ने इस देश को गुलाम बना रक्खा है। ये भीड़ का प्यार है। वो भीड़ जो भेड़ों से बदतर है।

ये प्यार है। अँधा और बड़बोला। वही प्यार जिसकी बदौलत उत्तर प्रदेश में एक बाप और बेटे ने राज्य को नाटक कंपनी बना दिया है और एक बहन जी ने विकास के नाम पर जनता के हाथ में हाथियों की मूर्तियां थमा दीं।

ये प्यार है। अँधा और बड़बोला। वही प्यार जिसकी बदौलत पश्चिम बंगाल में दीदी को हर दूसरा इंसान माओवादी दीखता है और हर पहला एवं तीसरा मोदीवादी।

ये प्यार है। अँधा और बड़बोला। वही प्यार जिसकी बदौलत लालू यादव की भैंसों का चारा कभी ख़त्म नहीं होता।

ये प्यार है। अँधा और बड़बोला। वही प्यार जिसकी बदौलत राज ठाकरे नाम का एक टुच्चा गुंडा महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के कक्ष में बैठ कर फ़िल्मी कलाकारों का दमन करता है।

ये प्यार है। अँधा और बड़बोला। वही प्यार जिसकी बदौलत हैदराबाद में एक और लफंगा अकबरुद्दीन ओवैसी हिंदुस्तान की धरती से हिंदुओं को लुप्त कर देने की बात करता है और हज़ारों की भीड़/भेड़ तालियों से उसका अभिनन्दन करती है।

ये प्यार है। अँधा और बड़बोला। वही प्यार जिसकी बदौलत पैसों के लिए ईमानदार इंसानों को और विजय माल्या के लिए बैंकों को कतार में खड़ा कर दिया जाता है।

ये प्यार है। अँधा और बड़बोला। वही प्यार जो आज भी हर फिल्म पर बीइंग ह्यूमन  की टीशर्ट पहनकर ५०० करोड़ सलमान खान के हाथ में रख कर कहता है – “आई लव यू सलमान !”

ये हमारा प्यार है।  हमारा इश्क़। बिना शर्त, अप्रतिबंधित, और निःस्वार्थ। हमारा जूनून। ये डर के शाहरुख़ खान वाला प्यार है जो अपने प्यार के लिए किसी का खून कर सकता है, प्यार जो हर दिन एक सनके आशिक़ की तरह अपने ही देश का बलात्कार करता है और फिर गर्भपात कराता है।

आईये इस बार वैलेंटाइन’स डे के अवसर पर इस प्यार को और अंधा, थोड़ा और बड़बोला बनायें क्यूंकि किसी बड़े शायर ने कहा है – “ये इश्क़ नहीं आसां, आग का दरिया है, आँख मूँद कर जाना है।”

Rammohan to Ramakrishna by F. Max Muller – Lest We Forget!

Countries have habits. Our country has a habit of either believing too strongly in somebody or not believing a word of the person. Whether a person is truthful is a thing to be analyzed only much later when someone else who can have a greater command on our belief system appears on the scene. Many nations have a national habit of believing only their own. Other nations have the habit of believing anything that is imported. Few countries can maintain a balance between the two and analyze. Continue reading “Rammohan to Ramakrishna by F. Max Muller – Lest We Forget!”

Swami Vivekananda, Women’s Rights, and Uniform Civil Code

India celebrated Republic Day yesterday. We celebrated National Youth Day on 12th January. We also celebrated the birth anniversary of Netaji Subhash Chandra Bose on 23rd. As I started for my work location on 12th of January, I saw on my way, a statue of Swami Vivekananda in a park. The statue shimmered like diamond, was garlanded, and ameliorated with marigold. The visage was beautiful. A similar image awaited me on 23rd January for Netaji and as we celebrated our Republic Day yesterday, I see flags and flowers blanketing the city. I had a question to myself. Have we limited our appreciation and celebrations to just a tweet a year, a post-share per annum of their famous quotes, cleaning of their statues, and garlanding them? The second question in front of me was – How many ideas of these great minds have we garlanded so far? Continue reading “Swami Vivekananda, Women’s Rights, and Uniform Civil Code”

तैमूर-Timur-Lang-Langda Tyagi और नाम में क्या रक्खा है?

लंगड़ा त्यागी ने अपने लड़के का नाम तैमूर रखा है। इस से ट्विट्टर वालों का मुंह फूल गया है। गुस्से की वजह है – तैमूर का मतलब होता है लोहा। कोई अपने बच्चे का नाम लोहा कैसे रख सकता है? लोहा अली खान पटौडी – कैसा अटपट नाम रख दिया है! जब चाँदी, सोना जैसे नाम उपलब्ध थे, तो ये लोहा क्या सोच कर रख दिया ?

खैर छोड़िये, तकलीफ सिर्फ इस बात की है कि नाम का मतलब तो सबने समझ लिया पर किसी ने तैमूर लंग को याद नहीं किया। ऐसा भी तो हो सकता है कि सैफ को वो तानाशाह इतने पसंद हैं कि बेटे को भी कुछ उसी मुकाम पर देखना चाहते हों! क्यों? नहीं हो सकता है? हाँ, पर ट्विटर नागरिकों को ये बात कौन समझाए?

अब नामों की बात चली है तो नामों की ही बात करते हैं। मेरे भाई की क्लास में एक बच्चे का नाम था सद्दाम हुसैन। न न, रुकिए। इस से पहले की आप उसके माँ बाप को इराक भेज दें, मैं बता दूं कि जब इस सद्दाम का जन्म हुआ था तब इराक में जैविक या बायोलॉजिकल अस्त्र बनने शुरू नहीं हुए थे। हाँ, मगर आप ये कहते हैं कि जब अमरीका ने हम सबको सूचना दे दी कि ऐसे अस्त्र वहाँ मिल रहे हैं, तो इस सद्दाम के अब्बाजी को बच्चे का नाम बदल देना चाहिए था। जॉर्ज बुश अच्छा नाम होता।

नाम का खेल बहुत गहरा होता है। मेरे पड़ोस के मोहल्ले में एक अंकल ने अपने चार बच्चों का नाम – बनावन राम, बसावन राम, बिगारन राम और घिनावन राम रख दिया। सृष्टि, स्थिति, और प्रलय तीनो विभाग अपने परिवार में ही रख लिए। जैसे आज ट्विटर हँसता है, तब मोहल्ले हँसा करते थे। सो हमारे मोहल्ले ने ठहाके लगाए। बनावन राम और बसावन की शादी हो गयी है । बिगारन और घिनावन के लिए कोई बिगड़ी रानी और घिनौनी नारी मिले तो मुझे बताइएगा।

हमारे दूधवाले का नाम दुखलाल था। ये हमेशा दुःख में लाल पीला होता था। एक दिन वो काफी दुखी हो गया। फिर उसके दोस्त टोनी ने उसे अपना नाम बदलने को कहा। अब उसका नाम सुखलाल हो गया है। अब वो हमेशा खुश रहता है। मेरा बचपन बोकारो जिला के अंतर्गत कथारा नामक स्थान में गुज़रा। जगह बहुत विकसित नहीं है। कोलफील्ड है, जन्म से पहले ही बच्चे काले हो जाते हैं। जगह की दुर्दशा देखकर कुछ सड़कछाप दार्शनिकों ने नाम को बदलकर खटारा रख दिया। नाम बदलते ही हालात बद से बदतर हो गए और गुमला जिले ने कथारा पर परमाणु बम गिरा दिया।

डाकू मंगल सिंह का नाम बड़े अरमानों के साथ मंगल रखा गया। अपने नाम से प्रभावित होकर उसने लोगों में इतना धन बाँटा कि अब उसका नाम लोग दानवीर कर्ण रखने की सोच रहे हैं। इसी प्रकार शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा के रामायण में आदतन अदृश्य हैं। अरविन्द केजरीवाल महर्षि अरविन्द घोष की अपूर्ण राजनैतिक यात्रा को पूरा करने आये हैं। कपिल सिबल ज़ीरो लॉस का सांख्य देने वाले महर्षि कपिल हैं, भाजपा के एम.जे. अकबर बाबरी मस्जिद का बदला लेने आये पोते हैं, अखिलेश यादव अयोध्या मसले का हल निकालने दोबारा जन्मे भगवान राम हैं, राहुल गांधी गौतम बुद्ध के लड़के हैं और नरेंद्र मोदी स्वयं स्वामी विवेकानंद हैं।

विजय माल्या बैकों पर विजय प्राप्त कर अपने देश से आज़ाद हो गए हैं, और मेक इन इंडिया को आईसिस वालों ने सही समझ लिया है। ५०० और १००० के दानवटाइज़ेशन में रिज़र्व बैंक हर रोज़ अपने रिज़र्व होने का एक नया प्रमाण दे रहा है और ऑटोमेटेड टेलर मशीन से आटोमेटिक पैसे निकल रहे हैं। वहीँ काले धन ने फेयर एंड लवली स्कीम को ठुकरा दिया है।

आप भी सोच रहे होंगे कि इस लड़के ने पी रक्खी है क्या! इतनी रात गए क्या बकवास कर रहा है। नहीं, मेरा नाम अभिषेक है। मैं पीता नहीं हूँ। मैं सुबह से शाम तक मंदिर में बैठकर नारायण मूर्ति को तिलक लगाता हूँ। वैसे ट्विटर वालों ने ऐसा हंगामा मेरे नामकरण के वक़्त किया होता तो आज हर चौराहे पर एक अभिषेक माथे पर तिलक लगा कर खड़ा न मिलता। अमिताभ बच्चन के बेटे का नाम भी शायद अभिनय बच्चन होता।

#लोल।