उलझते बंधन – Rakshabandhan Special

करीब १२-१३ बरस का था। नए पड़ोसी आये थे उस दिन। माँ ने मुझे उनकी मदद करने के लिए भेजा। एक ट्रक भर कर सामान था। काफी चीज़ें थीं। घर में उनके बस सिन्हा अंकल खुद, उनकी पत्नी और उनकी बेटी थी। आंटी और बेटी तो अंदर बैठ गए, सो मैंने और अंकल ने मिलकर सारा सामान उतारा और अंदर रखा। थालियाँ, चम्मच, मिक्सर ग्राइंडर – मुझसे तो यही उठ रहे थे। करीब तीन से चार घंटों में ये काम पूरा हुआ। अंकल ने अंदर आकर बैठने को कहा। यही सोचकर कि कुछ खाने पीने को मिलेगा, मैं अंदर बैठ गया।

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